उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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गोदान--मुंशी प्रेमचंद यह कहते-कहते खन्ना दोनों हाथों से सिर पीटकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे। मेहता ने उन्हें छाती से लगाकर दुखित स्वर में कहा -- खन्नाजी, ज़रा धीरज से काम लीजिए। ...

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